Page Nav

HIDE

Gradient Skin

Gradient_Skin

Pages

बड़ी ख़बर

latest

आज महास्नान कर बीमार हो जाएंगे महाप्रभु जगन्नाथ

बिलासपुर।  रेलवे परिक्षेत्र स्थित श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर 22 जून को महाप्रभु भगवान जगन्नाथ को 108 कलश जल, गंग...


बिलासपुर।  रेलवे परिक्षेत्र स्थित श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर 22 जून को महाप्रभु भगवान जगन्नाथ को 108 कलश जल, गंगाजल और पंचामृत से महास्नान कराया जाएगा। स्नान के बाद भगवान बीमार हो जाएंगे और 15 दिनों तक विश्राम करेंगे।

इसी कड़ी में रथयात्रा का आयोजन सात जुलाई को होगा। रथ प्रतिष्ठा छह जुलाई को की जाएगी। भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के साथ रथयात्रा पर निकलेंगे और भक्तों को दर्शन देंगे।

रथयात्रा रेलवे क्षेत्र के जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर तितली चौक, रेलवे स्टेशन, तारबाहर, गांधी चौक, तोरवा थाना काली मंदिर होते हुए गुडिचा मंदिर पहुंचेगी। नौ दिनों तक भगवान गुडिचा मंदिर में रहेंगे, जहां विभित्र धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। 15 जुलाई को बहुणा यात्रा के साथ भगवान वापस मंदिर लौटेंगे।

रेलवे क्षेत्र में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी स्थापना और परंपराओं का ऐतिहासिक महत्व भी है। इस मंदिर की स्थापना 26 नवंबर 1996 को की गई थी और तभी से यह क्षेत्रीय और धार्मिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया है। मंदिर की स्थापना के बाद से ही हर साल यहां रथयात्रा का आयोजन होता है, जो भक्तों के लिए एक विशेष धार्मिक उत्सव है।

मंदिर की स्थापना के बाद रथयात्रा की परंपरा शुरू हुई, जो अब अपने 28वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। रथयात्रा के आयोजन के पीछे का इतिहास बहुत ही दिलचस्प है। मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष आरके पात्रा ने बताया कि 27 साल पहले पुरी जगन्नाथ मंदिर के कारीगर कुणना चंद्रा दास ने एक लाख रुपये की कम लागत से सरई की लकड़ी से 16 फीट लंबा, 17 फीट ऊंचा और 12 फीट चौड़ा रथ तैयार किया था। इस रथ को 101 फुट लंबी रस्सी से भक्त खींचते हैं। पिछले 20 सालों तक पुरी के कारीगर दास इस रथ का निर्माण करते थे, लेकिन पिछले 6 सालों से उनके सहयोगी राजकुमार इस कार्य को संभाल रहे हैं। आज के समय में रथ निर्माण में एक लाख से अधिक का खर्च आता है और हर साल रथ के कपड़े और झंडे बदलते हैं।

मंदिर में स्थापित महाप्रभु को महाबाहु के रूप में पूजा जाता है। महाप्रभु का विग्रह नीम की लकड़ी से बना है और इसका निर्माण पुरी के कारीगर गजेंद्र महाराणा द्वारा किया गया था। महाप्रभु के साथ बलभद्र का ढाई फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दो फीट ऊंचा विग्रह भी स्थापित है। वर्ष 2015 में नवकलेवर के समय पुरी से ही भगवान का नया विग्रह लाया गया था।

महाप्रभु जगन्नाथ स्नान-दान पूर्णिमा के अवसर पर महास्नान करते हैं। इस दिन उन्हें 108 कलश जल और 64 प्रकार की जड़ी-बूटियों से स्नान कराया जाता है। इसके बाद भगवान बीमार हो जाते हैं और मंदिर के पट 15 दिनों के लिए बंद हो जाते हैं। इस दौरान भगवान का उपचार जड़ी-बूटियों से किया जाता है और भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर पुनः खोला जाता है।

No comments