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धान के बदले रागी की खेती करने किसानों को किया जा रहा है प्रोत्साहित

  उत्तर बस्तर कांकेर: भानुप्रतापपुर विकासखंड के ग्राम कनेचुर, जामपारा के किसान इन दिनों खरीफ धान फसल की कटाई एंव बिक्री के उपरांत रबी ग्रीष्...

 


उत्तर बस्तर कांकेर:भानुप्रतापपुर विकासखंड के ग्राम कनेचुर, जामपारा के किसान इन दिनों खरीफ धान फसल की कटाई एंव बिक्री के उपरांत रबी ग्रीष्मकालीन धान फसल के बदले लाभकारी रागी (मड़िया) फसल की बुवाई करने जुट गए है। कलेक्टर डॉ. प्रियंका शुक्ला के निर्देशन में कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा जिले के विभिन्न विकास खंडों के किसानों को धान के बदले रागी फसल की खेती से अतिरिक्त आमदनी की जानकारी दिया जा रहा है।

          भानुप्रतापपुर विकासखंड के ग्राम कनेचुर जामपारा के किसान जो लंबे समय से खरीफ एवं रबी ग्रीष्म ऋतु में मुख्य रूप से धान की ही खेती करते थे, कृषि विभाग के क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी प्रवीण कवाची एवं किसान मित्र रमन कोसमा के प्रयास से ग्राम कनेचुर एवं जामपारा के किसानों को ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर उन्नत कृषि तकनीक से रागी फसल की खेती की जानकारी किसानों को दी जा रही है। कृषि विभाग से किसानो को उन्नत किस्म का बीज उपलब्ध करवा कर किसानो को ग्रीष्म कालीन धान के बदले में रागी (मड़िया) की खेती के फायदे बताया जा रहा है। रागी की खेती से कम लागत में धान की तुलना दोगुना से मुनाफा कमाया जा सकता है।

रागी खेती की उन्नत कृषि तकनीक
          ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी ने क्षेत्र के किसानो को उन्नत कृषि तकनीकी से रागी के  खेती की जानकारी देते हुए बताया कि रागी मड़िया की खेती खरीफ के अलावा रबी ग्रीष्म ऋतु में भी आसानी से खेती की जा सकती है। खरीफ में जून माह के मध्य से जुलाई तक रागी की बुवाई करे एवं रबी ग्रीष्म ऋतु में दिसंबर माह से जनवरी एवं फरवरी मध्य तक बुवाई करे, रोपा विधि से बुवाई करने पर 04 से 05 किलो बीज प्रति हेक्टेयर लगती है, जिसे कतार बोनी में 08 से 10  किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर, छिड़काव विधि में 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लगती है, कतार एंव रोपा पद्धति से रागी की बुवाई के लिए दो कतारो के बीच की दूरी 22 सेंटीमीटर एवं पौधों से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखे रबी ग्रीष्म ऋतु  में रोपाई के लिए नर्सरी में बीज दिसंबर माह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक डालना चाहिए। 20 से 25 दिन के पौधे की रोपाई करें, 15 से 20 दिन के अंतराल में 04 से 05 सिंचाई की आवश्यकता होती है, रागी फसल 90 से 100 दिन में पककर तैयार हो जाती है। उन्नत तरीका से रागी की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 30 से 40 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है। किसान अपने उपज को वन विभाग, वन धन समिति के माध्यम से राज्य शासन द्वारा स्थापित मिलेट प्रोसेसिंग फैक्ट्री नाथिया नवागांव में बिक्री कर सकते है। मिलेट प्रोसेसिंग यूनिट कृषि विज्ञान केंद्र कांकेर में भी 03 हजार क्विंटल से अधिक कीमत पर रागी की बिक्री कर सकते है। किसान भाई बीज प्रक्रिया केंद्र में भी पंजीयन  करवा कर 05 हजार प्रति क्विंटल  से अधिक दर पर मड़िया बिक्री कर सकते है। बीज प्रक्रिया केंद्र रागी बिक्री पंजीयन  का अंतिम तिथि 31 दिसंबर 2022 निर्धारित किया गया है।  रागी, कोदो, कुटकी का इंटरनेशनल मार्केट में अच्छी मांग है। कुपोषण दूर करने व किसानो के आय में वृद्धि करने मड़िया, कोदो, कुटकी फसलों को अधिक से अधिक मात्रा में बोने के लिए किसानों को राज्य सरकार द्वारा प्रोत्साहित भी किया जा रहा  है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं मिलेट मिशन योजना का कांकेर जिले में भारत का सबसे अधिक क्षमता वाला मिटेल प्रोसेसिंग फैक्ट्री भी नाथिया नवगांव में स्थापित किया गया है, इसके अलावा रागी कोदो कुटकी की खरीदी कृषि विज्ञान केंद्र एवं बीज प्रक्रिया केंद्र में भी किया जा रहा है।

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