पंचोत्सव की दस्तक द्वार पर हो चुकी है। कल यानी शनिवार को पंच दिन के उत्सव की शुरूआत धनतेरस के साथ होगी। ये बात और है कि सूर्य ग्रहण के कार...
पंचोत्सव की दस्तक द्वार पर हो चुकी है। कल यानी शनिवार को पंच दिन के उत्सव की शुरूआत धनतेरस के साथ होगी। ये बात और है कि सूर्य ग्रहण के कारण पांच दिन तक लगातार चलने वाला उत्सव इस बार छह दिन तक रहेगा।
बात करते हैं धनतेरस के पर्व की।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान कुबेर और भगवान धन्वंतरि की पूजा का विधान है। इसके अलावा धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है।
धनतेरस पर सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन जिस भी वस्तु की खरीदारी की जाएगी उसमें 13 गुणा वृद्धि होगी। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था इसलिए इसे धनतेरस के त्योहार के रुप में मनाया जाता है।
धनतेरस का महत्व
शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के दौरान हाथों में अमृत से भरा स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत को देवताओं को पिलाकर अमर बना दिया था। धनवंतरी के जन्म के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। धनवंतरी के जन्म के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
धनतेरस से जुड़ी अन्य मान्यता
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन देवताओं के शुभ कार्य में बाधा डालने पर भगवान विष्णु ने असुरों के गुरू शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे तो उन्हें मना कर देना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि दान करने के लिए कमण्डल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमण्डल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। तब भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। इसके बाद राजा बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि वामन भगवन को दान कर दी। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिल गई और बलि ने जो धन.संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा धन- संपत्ति देवताओं को फिर से प्राप्त हो गई। इस कारण से भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस को संध्या के समय शुभ मुहूर्त में उत्तर दिशा में मां लक्ष्मी, भगवान धनवंतरी और कुबेर जी की स्थापना करें। इसके बाद घी का दीपक जलाएं और चंदन का तिलक लगाएं। पूजा के समय कुबेर जी के मंत्र ओम ह्रीं कुबेराय नमः का 108 बार जाप करें और धनवंतरी स्तोत्र का पाठ करें। इस दिन कुबेर जी को सफेद मिठाई और धनवंतरी को पीली मिठाई का भोग लगाना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन भी अवश्य करें। मां लक्ष्मी के समक्ष भी दीपक जलाएं और तिलक लगाएं। मां लक्ष्मी और गणेश जी को फल, फूल, मिठाई अर्पित करें। इसके बाद मां लक्ष्मी की आरती उतारें।
इन चीजों करें जरूर खरीददारी
1− धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन लक्ष्मी.गणेश की मूर्ति खरीदें और दीपावली के दिन इसी का पूजन करें।
2− धनतेरस के दिन सोने व चांदी की वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन महिलाऐं सोने- चांदी के आभूषण खरीदती हैं लेकिन यदि आपकी जेब अनुमति ना दे तो आप सोने या चांदी का सिक्का भी खरीद सकते हैं।
3− इस दिन धातु के बर्तन खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। विशेषकर चांदी और पीतल को भगवान धन्वंतरी का मुख्य धातु माना जाता है। धनतेरस के दिन चांदी या पीतल के बर्तन खरीदने चाहिए।
4− मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान हाथ में कलश लेकर जन्मे थे। इसलिए धनतेरस के दिन पानी भरने वाला बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है।
5− धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन झाड़ू खरीदने से घर से दरिद्रता और नकारत्मक ऊर्जा दूर होती है।
6− मान्यताओं के अनुसार धनतेरस के दिन दक्षिणवर्ती शंख, कमलगट्टे की माला, धार्मिक साहित्य या रुद्राक्ष की माला खरीदना शुभ माना जाता है।
7− धनतेरस के दिन प्राणप्रतिष्ठित रसराज पारद श्री यंत्र घर में लाना बेहद शुभ होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्रीयंत्र खरीदने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सुख.समृद्धि बनी रहती है।
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